सामाजिक प्रभाव आकलन : क्या हम इसकी अनदेखी कर सकते हैं?

11 Apr 2019
Dr Preeti Jain Das

भूमि अधिग्रहण को सुचारू बनाने के लिए एसआईए के तहत परामर्शदायी समझौता वार्ता महत्वपूर्ण प्रक्रिया है

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10 दिसंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और तमिलनाडु की सरकारों को मेधा पाटेकर के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा दायर उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है, जिसमें भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपरेन्सी इन लैण्ड एक्विजिशन, रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटेलमेंट या आरएफसीटीएलएआरआर) अधिनियम, 2013 में किये गये व्यापक संशोधनों को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए), सहमति प्रावधान और स्थानीय प्रतिनिधि निकायों की भागीदारी के प्रावधानों से परियोजनाओं की एक व्यापक श्रेणी को छूट देना मूल अधिनियम की 'बुनियादी संरचना' के विपरीत है, "इससे भूस्वामियों और किसानों की आजीविका के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।"

संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत राज्यों द्वारा आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 संबन्धी विधायी कार्रवाई का संक्षिप्त इतिहास तथ्यों पर प्रकाश डालता है। तमिलनाडु पहला राज्य था जिसने आरएफसीटीएलएआरआर (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2014 को लागू करके सामाजिक प्रभाव आकलन के दायरे को यह कहते हुए सीमित कर दिया कि जब भूमि का अधिग्रहण राज्य के तीन कानूनों के तहत किया गया है तो केन्द्रीय अधिनियम, मुआवजे के उद्देश्य को छोड़कर, लागू नहीं होता। ये अधिनियम हैं, हरिजन कल्याण योजनाओं के लिये तमिलनाडु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1978, औद्योगिक उद्देश्यों के लिए तमिलनाडु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1997 और तमिलनाडु राजमार्ग अधिनियम, 2001। तमिलनाडु में भूमि अधिग्रहण के पांच में से चार हिस्से के बराबर भूमि चूंकि इन अधिनियमों के तहत अधिग्रहित की गई है, इसलिये बहुत से मामलों में सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) को भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से प्रभावी रूप से हटा दिया गया है।

आरएफसीटीएलएआरआर(गुजरात संशोधन) अधिनियम, 2016 और आरएफसीटीएलएआरआर (तेलंगाना संशोधन) अधिनियम, 2017 में राज्य सरकारों को राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा से संबंधित परियोजनाओं, विद्युतीकरण, किफायती आवास और गरीबों के लिए आवास संबन्धी ग्रामीण अवसंरचना परियोजनाओं, औद्योगिक गलियारों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, जिनमें सार्वजनिक निजी भागीदारी वाली परियोजनायें शामिल हैं, को सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) से छूट दी गई है। आरएफसीटीएलएआरआर (आंध्र प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2017 जिसे मई 2018 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली है, में गुजरात और तेलंगाना की परियोजनाओं जैसी समान परियोजनाओं के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) से छूट का प्रावधान हैं। आरएफसीटीएलएआरआर(महाराष्ट्र संशोधन) अधिनियम, 2018 ने राज्य सरकार द्वारा विकसित सिंचाई परियोजनाओं और औद्योगिक क्षेत्र या औद्योगिक सम्पदा परियोजनाओं को भी सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) से छूट वाली परियोजनाओं की उपरोक्त सूची में जोड़ दिया है।

आरएफसीटीएलएआरआर (झारखंड संशोधन) अधिनियम, 2018 में राज्य सरकार को जनहित में, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, जिनमें स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, पंचायत भवन, आंगनवाड़ी केंद्र, रेल, सड़क, जलमार्ग, विद्युतीकरण परियोजनायें, सिंचाई परियोजनायें, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास, जलापूर्ति पाइपलाइन, पारेषण और अन्य सरकारी भवन शामिल हैं, को सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) की आवश्यकता से छूट देने की शक्ति प्रदान की गर्इ् है।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 ने सार्वजनिक उद्देश्य से निजी भूमि जब्त करने के लिए राज्य को निरंकुश रूप से अपनी शक्तियों का उपयोग करने की अनुमति दे दी, जबकि भू स्वामियों को बहुत कम मुआवजा दिया जाता था और वह भी प्राय: लंबी कानूनी लड़ाई के बाद। बिना इच्छा के विस्थापित किये गये लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए पर्याप्त उपायों की कमी और सरकारी निकायों और परियोजना के प्रस्तावकों द्वारा अधिग्रहित भूमि से मुनाफा कमाने की घटनाओं से किसानों, खेतिहरों और भू मालिकों में असंतोष पैदा हुआ। आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 के पारित होने से एक नए भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में विभिन्न क्षेत्रों - न्यायपालिका, समाज, राजनीतिक प्रतिष्ठान और नीति क्षेत्र —में दशकों से चली आ रही चर्चाओं और विचार-विमर्श को मूर्त रूप मिला। नये केंद्रीय कानून को व्यापक रूप से एक मानवीय और भागीदारी भूमि अधिग्रहण प्रणाली शुरू करने की देश की यात्रा में मील का पत्थर माना गया। इस नये कानून में सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए), सहमति, भूमि के बदले बाजार दर पर नगद मुआवजा और परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के जरिये विकास और लागत के लाभ का अधिक समान रूप से वितरण करने की बात कही गई है।

आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 की धारा 4 भूमि अधिग्रहण के लिये सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) को पूर्व शर्त के तौर पर अनिवार्य करती है। इसके अनुसार प्रभावित होने वाले समुदायों और स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों के परामर्श से किसी स्वतंत्र एजेन्सी द्वारा किये जाने वाले अध्ययन में परियोजना की पूरी अवधि के दौरान संभावित प्रतिकूल सामाजिक प्रभावों की प्रकृति और उनकी व्यापकता की पहचान करने के साथ ही परियोजना से प्रभावित और विस्थापित होने वालों की संख्या और आजीविका, ढांचागत परिसंपत्तियों और जनसुविधाओं पर भूमि के नुकसान से पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाना होगा। सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट में यह भी बताना होगा कि क्या परियोजना सार्वजनिक उद्देश्य से है, इसके लिए ली जा रही भूमि की मात्रा क्या परियोजना की न्यूनतम जरूरत है और वर्तमान स्थान का चयन क्या वैकल्पिक स्थानों पर विचार करने के बाद किया गया है, और इसके साथ ही रिपोर्ट में प्रतिकूल सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए किये जाने वाले उपायों पर आने वाली कुल लागत का परियोजना की कुल लागत पर, परियोजना के लाभों की तुलना में, पड़ने वाले प्रभाव के बारे में टिप्पणी देनी होगी। अध्ययन के समापन में, प्रभावित गांवों की ग्राम सभा में एसआईए रिपोर्ट और सामाजिक प्रभाव शमन योजना (एसआईएमपी) के मसौदे को साझा करने और प्रभावित परिवारों के विचारों का पता लगाने के लिए एक जन सुनवाई का आयोजन किया जाए, जिसे अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया जाए जो संबन्धित सरकार को सौंपी जायेगी। यह भी जरूरी है कि पीपीपी परियोजनाओं और निजी इकाइयों की परियोजनाओं के लिए भूस्वामियों से 'स्वतंत्र, पहले से और उन्हें सूचित कर सहमति' (फ्री प्रायर इंफार्म्ड कंसेन्ट —एफपीआईसी) ली जाये और इसे एसआईए प्रक्रिया के भाग के रूप में प्राप्त किया जाये।

सामाजिक प्रभाव आकलन के बारे में प्राय: एक शिकायत यह की जाती है कि यह अधिक समय लेने वाली और जटिल प्रक्रिया है, टुकड़े टुकड़े में कई जन सुनवाई होती हैं, खासकर जब ऐसे भूखंड का अधिग्रहण करना होता है जो कई गांवों में फैला हुआ है। एसआईए की राज्य इकाइयों, एजेंसियों और जिला प्रशासन में पर्याप्त क्षमता का अभाव और अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने और एसआईए विशेषज्ञ समूह के गठन और इसकी मूल्यांकन रिपोर्ट के बीच लगने वाला समय भी भूमि अधिग्रहण करने में देरी के कारण के रूप में पहचाना गया है। इसके अतिरिक्त, एसआईए अध्ययन की शुरूआत और आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 की धारा 11 के तहत प्रारंभिक अधिसूचना, जो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया की शुरूआत करता है, जारी होने के बीच की अंतरिम अवधि में बेईमान प्रापर्टी डीलरों द्वारा भूमि की कीमत बढ़ा देने के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई है।

निस्संदेह, एक नए बने कानून के सामने आने वाली चुनौतियों से नीतिगत कार्यक्रमों और प्रक्रियात्मक तौर तरीकों से निपटने की आवश्यकता है, ताकि इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सके। आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 के लागू होने के बाद से, ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग ने आरएफसीटीएलएआरआर(सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति) नियम, 2014 और आरएफसीटीएलएआरआर(मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन और विकास योजना) नियम, 2015 तैयार किया और समय-समय पर अधिसूचनायें जारी कीं। देश भर के अनेक शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों ने एसआईए एजेंसियों, पेशेवरों और अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण करने वाले निकायों के पदाधिकारियों में क्षमता निर्माण के लिए अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। प्रत्येक परियोजना स्थल की जनसांख्यिकीय और भौगोलिक विशिष्टता के लिये जगह छोड़ते हुए, विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक प्रभाव आकलन के लिए व्यापक मूल्यांकन मानक तैयार करने से निश्चित रूप से मानकीकृत रिपोर्टिंग में सुविधा होगी।

1 जनवरी 2014 को जब से यह अधिनियम लागू हुआ था, तब से एसआईए और संबंधित प्रावधानों के कार्यान्वयन के अनुभव का मूल्यांकन इसके उतार चढ़ाव भरे इतिहास को सामने लाता है। आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के एक वर्ष के भीतर, 31 दिसंबर 2014 को एक अध्यादेश जारी करके सामाजिक प्रभाव आकलन के दायरे में कटौती कर दी गई। सामाजिक प्रभाव आकलन संबन्धी प्रावधानों पर निष्पक्ष तरीके से नजर डाले बिना इसके प्रभाव पर कोई निर्णय ले लेने से, इस संबन्ध में कार्यपालिका के खुले दिमाग को लेकर सवाल उठते हैं। आरएफसीटीएलएआरआर(संशोधन) विधेयक, 2015, जो फरवरी 2015 से संसद में लंबित है, अध्यादेश द्वारा एसआईए पर लगाई गई बंदिशों को कानूनी रूप देने के लिये लाया गया है। एसआईए के कारण भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में देरी होने के बारे में दी गई दलीलों की साक्ष्यों से पुष्टि नहीं होती।

इसके अलावा, आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 की धारा 3 (ई) के साथ पढ़ी गई धारा 6 (1) राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्र सरकार को उनकी वेबसाइटों पर उन परियोजनाओं की सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट और सामाजिक प्रभाव प्रबंधन योजना अपलोड करने को अनिवार्य बताती है, जिनके मामले में वे 'उपयुक्त सरकार' हैं। हालांकि, इसकी प्रकृति और सरकारों द्वारा इसके अनुपालन में काफी विविधता है। इसी प्रकार, आरएफसीटीएलएआरआर (सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति) नियम, 2014 की धारा 13 के अनुसार भूमि अधिग्रहण के प्रत्येक मामले की संपूर्ण प्रक्रिया को प्रदर्शित करने के लिये राज्य एसआईए इकाइयों द्वारा प्रबंधित एक समर्पित वेबसाइट बनाने संबन्धी प्रावधान का पालन कम उल्लंघन अधिक किया गया है।

सवाल यह उठता है कि क्या सरकार और उद्योग द्वारा सामाजिक प्रभाव आकलन का विरोध प्रावधानों की सिद्ध हो चुकी अक्षमता या जड़ता के कारण किया जा रहा है या यह भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को अपारदर्शी बनाए रखने के लिये सोच समझ कर किया गया एक प्रयास है।

विशेष तौर पर, भूमि के मालिकों और परियोजना के प्रस्तावकों एवं भूमि अधिग्रहण करने वाले निकायों, दोनों पक्षों की शक्ति में विषमता के मद्देनजर सामाजिक प्रभाव आकलन नई भूमि अधिग्रहण व्यवस्था के अंतर्निहित उद्देश्यों में से एक की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है। एक पद्धतिगत माध्यम के रूप में, सामाजिक प्रभाव आकलन अध्ययन तीन महत्वपूर्ण कार्य करता है - सबसे पहले, यह सुनिश्चित करता है कि परियोजना डेवलपर्स और भूमि अधिग्रहण अधिकारियों द्वारा परियोजना के सार्वजनिक उद्देश्य, भूमि की मात्रा और साइट के चयन पर समुचित ध्यान दिया गया है। दूसरे, यह समुदाय की अपनी भूमि देने की उनकी इच्छा को जानने के लिये एक बैरोमीटर के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार, परियोजना शुरू करने के औचित्य के बारे में जानकारी होने के आधार पर निर्णय लेने का मौका देता है, और तीसरा, भूमि अधिग्रहण और सामाजिक प्रभाव शमन योजना की लागत की समग्र परियोजना लागत से तुलना करने से किसी परियोजना की व्यवहार्यता का संकेत मिलता है।

निश्चित रूप से, सामाजिक प्रभाव आकलन का जनादेश भूमि के मालिकों के 'सूचित किये जाने के अधिकार और उनका पक्ष 'सुने जाने के अधिकार' को मान्यता देकर सार्वजनिक प्रयोजन के लिए भूमि विनियोग के क्षेत्र में एक बड़े बदलाव को दर्शाता है। एसआईए प्रक्रिया के हिस्से के रूप में भूमि मालिकों और आजीविका पर निर्भर लोगों के लाभों के बारे में बातचीत के माध्यम से निर्णय करने का दृष्टिकोण, टकराव का रास्ता छोड़कर सुलह की दिशा में बढ़ने के लिये एक अच्छी तरह सोच विचार कर तैयार की गई व्यवस्था है। आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताओं को कमजोर करने से फिर से भूमि संघर्ष शुरू हो सकते हैं जो देश के औद्योगिक और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए हानिकारक हैं।

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