"हमारा ग्रह नहीं, हम नाजुक हैं" : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्‍व सतत विकास शिखर सम्‍मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किया वैश्विक गठबंधन का आह्वान

February 16, 2022
PM Speech

नई दिल्‍ली, फरवरी 16, 2022: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए समन्वित वैश्विक कार्यवाही पर बल देते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पर्यावरणीय सततता केवल जलवायु न्‍याय के माध्‍यम से ही प्राप्‍त की जा सकती है। "सफल जलवायु कार्यवाही के लिए पर्याप्‍त धन की भी आवश्‍यकता है। इसके लिए विकसित देशों को वित्‍त और प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा किये जाने की ज़रूरत है, "नई दिल्‍ली में बुधवार को आयोजित विश्‍व सतत विकास शिखर सम्‍मेलन 2022 (वर्ल्‍ड सस्‍नटेनेबल डेवलपमेंट समिट, डब्‍ल्यूएसडीएस) को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक गठबंधन की आवश्‍यकता पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कोलिशन फ़ॉर डिज़ास्‍टर रिज़ीलिएंट इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर, इंटरनेशनल सोलर अलायंस और लाइफ़ - लाइफ़स्‍टाइल फ़ॉर एन्‍वायर्नमेंट की ओर भी ध्‍यान आकर्षित किया। श्री मोदी ने कहा, "मैं उन्‍हें तीन पी कहता हूं, प्रो प्‍लैनेट पीपल। इन तीन पी के लिए आंदोलन लाइफ़ के लिए गठबंधन है। ये तीन वैश्विक गणबंधन वैश्विक संसाधनों को बेहतर बनाने के लिए हमारे पर्यावरणीय प्रयासों के तीन आयामों को तैयार करेंगे।"

दि एनर्जी ऐंड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट (टेरी) का वार्षिक शिखर सम्‍मेलन, डब्‍ल्यूएसडीएस 2022 का विषय है, 'टुवॉर्ड्स ए रिज़ीलिएंट प्‍लैनेट : एन्‍श्‍योरिंग ए सस्‍टेनेबल ऐंड इक्विटेबल फ़्यूचर' यानी समुत्‍थानशील ग्रह की ओर : एक सतत और समतामूलक भविष्‍य। पर्यावरण एवं सतत विकास महत्‍वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं, इसके मद्देनज़र श्री मोदी ने कहा, "हमने सुना है कि लोग हमारे ग्रह को नाजुक कहते हैं, किंतु हमारा ग्रह नाजुक नहीं है, बल्कि हम हैं। हम नाजुक हैं। ग्रह और प्रकृति के प्रति हमारी प्रतिबद्धताएं कमज़ोर रही हैं। 1972 के स्‍टॉकहोम सम्‍मेलन के बाद से पिछले 50 वर्षों में काफ़ी कुछ कहा जाता रहा है। भारत में हमने इन बातों पर अमल किया है।"

डब्‍ल्यूएसडीएस 2022 में दो देशों के प्रमुख और लगभग एक दर्जन देशों के पर्यावरण मंत्री, संयुक्‍त राष्‍ट्र के प्रतिनिधि और दुनिया भर के 137 देशों के शिष्‍टमंडल भाग ले रहे हैं। शिखर सम्‍मेलन के उद्घाटन के अवसर पर सभी गणमान्‍य लोगों ने सामूहिक कार्यवाही का आह्वान किया और साथ ही विशेषकर विकासशील देशों के लिए न्‍यूनीकरण और अनुकूलन सहायता की आवश्‍यकता की भी बात की।

गयाना गणराज्‍य के राष्‍ट्रपति डॉ. मोहम्‍मद इरफ़ान अली ने अपने भाषण में कहा कि साझा वैश्विक कल्‍याण के लिए विश्‍व के नेताओं को प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करनी चाहिए। "इसके लिए बातें कम और न्‍यूनीकरण एवं अनुकूलन सहायता पर त्‍वरित कार्यवाही करने की आवश्‍यकता है।"

डॉ. अली ने कहा कि गयाना कार्बन के कम उपयोग को लेकर प्रतिबद्ध है और उसकी 'अल्‍प कार्बन विकास रणनीति 2030' अल्‍प कार्बन अर्थव्‍यवस्‍था बनाने के उसके प्रयासों को प्रदर्शित करती है। उन्‍होंने कहा कि उनका देश अपने लोगों की प्रगति को लेकर भी प्रतिबद्ध है। "जब हम जलवायु अजेंडा की बात करते हैं, तो हमें विकल्‍प भी उपलब्‍ध कराने चाहिए, हमें समूचे विश्‍व के, विशेषकर विकासशील देशों के लोगों की विकास की आशाओं-आकांक्षाओं में भी मदद देनी चाहिए। गयाना इसे लेकर प्रतिबद्ध है और उसके साथ ही हम अपने प्राकृतिक संसाधनों के सतत, आकांक्षापूर्ण दोहन के माध्‍यम से अपने लोगों के लाभ के लिए उनके जीवन की परिस्थितियों और उनकी आजीविका के विकास को लेकर भी प्रतिबद्ध हैं।"

इस अवसर पर संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की उप महासिचव सुश्री अमीना जे मोहम्‍मद ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए "ज़ोरदार कार्रवाई" पर बल दिया। "इस दशक में सभी बड़े देशों को रूपांतरकारी कार्यवाही कर वैश्विक उत्‍सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम करना चाहिए, वरना 1.5 डिग्री सेल्सियस की हमारी सामूहिक उम्‍मीद चूर-चूर हो जाएगी। हम पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस पर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। हमने जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्‍व का उदाहरण सामने है, हमने नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग किया है और निवल शून्‍य सम्मिलन को बढ़ाया है। पर इससे भी अधिक की आवश्‍यकता है, "सुश्री मोहम्‍मद ने कहा। उन्‍होंने कहा कि 2030 तक कोयले के उपयोग को तेज़ी से कम किया जाना चाहिए और 2040 तक पूरी तरह बंद कर देना चाहिए। "इसके साथ ही उसी स्‍तर पर नवीकरणीय ऊर्जा को भी काम में लाया जाना चाहिए, ताकि ऊर्जा का पारगमन न केवल तेज़ी से हो, बल्कि न्‍यायसंगत भी हो।"

विकासशील देशों के लिए, ख़ास तौर पर जलवायु वित्‍त के प्रकरण पर उन्‍होंने कहा कि "विकासशील देशों के पास इंतज़ार करने के लिए अधिक समय नहीं है और विशेषकर सबसे निर्धन लोगों की असुरक्षाओं को तुरंत कम किया जाना चाहिए। यही कारण है कि महासचिव और मैं लम्‍बे समय से कहते रहे हैं कि जलवायु वित्‍त का 50 प्रतिशत भाग अनुकूलन के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। ग्‍लासगो में नेताओं ने अनुकूलन राशि को 2019 के स्‍तर से दोगुना करने पर सहमति जतायी थी।' यह अच्‍छी शुरुआत है, लेकिन इतना ही पर्याप्‍त नहीं होगा।'

विकासशील विश्‍व में होने वाला यह तीन दिवसीय शिखर सम्‍मेलन इतने बड़े पैमाने पर स्‍वतंत्र रूप से आयोजित एकमात्र कार्यक्रम है, जिसमें विश्‍व के अग्रणी, विचारक, वैज्ञानिक, उद्योग जगत एवं सरकार के प्रतिनिधि और अन्‍य साझेदार एक मंच पर आकर अपने ग्रह के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए दीर्घकालीन समाधानों की दिशा में काम करते हैं।

शिखर सम्‍मेलन का उद्घाटन करते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने बल देते हुए कहा कि विकसित देशों को उत्‍सर्जन कम करने के अपने वादे पूरे करने चाहिए और विकासशील देशों को जलवायु वित्‍त उपलब्‍ध कराना चाहिए। उन्‍होंने कहा, "पर्यावरण एवं विकास, एक ही सिक्‍के के दो पहलू हैं और दोनों को साथ चलना चाहिए। विकास के लिए हमें अपनी हरित संपत्तियों को विघटित नहीं करना चाहिए। संसाधनों का इस्‍तेमाल सचेत और सुविचारित उपयोगिता पर आधारित होना चाहिए, न कि अंधाधुंध और विनाशकारी उपभोग पर।"

हाल के वर्षों में दुनिया भर में मौसम में भारी बदलाव की घटनाएं देखी गयी हैं, इसके बीच वर्चुअल तौर पर आयोजित डब्‍ल्‍यूएसडीएस 2020 पृथ्‍वी के कल्‍याण पर ध्‍यान केंद्रित करेगा और विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन से लेकर सतत उत्‍पादन, ऊर्जा परिवर्तन, वैश्विक सरोकारों और संसाधन सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर विचार करेंगे।

इस दौरान सस्‍टेनेबल डेवलेपमेंट लीडरशिप अवॉर्ड की भी घोषणा की गयी। 2005 में शुरू किया गया यह सम्‍मान वैश्विक अग्रणियों को सतत विकास एवं पर्यावरण सुरक्षा में योगदान के लिए दिया जाता है। इस वर्ष इसे जलवायु महत्‍वाकांक्षा एवं समाधान के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र के विशेष दूत और ब्‍लूमबर्ग एलपी और ब्‍लूमबर्ग फिलैन्‍थ्रपी के संस्‍थापक श्री माइकल आर. ब्‍लूमबर्ग को जलवायु परिवर्तन से निपटने के उनके कार्य के लिए दिया गया। ब्‍लूमबर्ग एलपी और ब्‍लूमबर्ग फिलैन्‍थ्रपी की टीमों की ओर से सम्‍मान स्‍वीकार करते हुए श्री ब्‍लूमबर्ग ने कहा, "हम सब जानते हैं कि हमें काफ़ी काम करना है और हम एक पल भी नहीं गंवा सकते। अच्‍छी बात यह है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उठाये गये कदमों से अर्थव्‍यवस्‍था भी विकसित होगी, रोज़गार तैयार होगा और लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य की भी रक्षा होगी। भारत मिसाल कायम करते हुए इसकी अगुवाई कर रहा है और यह देखकर अच्‍छा लगा कि सीओपी 26 में उसने जलवायु प्रतिबद्धताएं तय की। हमारी कम्‍पनी और हमारा फ़ाउंडेशन लक्ष्‍यों तक पहुंचने में सहायता के लिए भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अग्रणियों के साथ काम रहा है। इसमें हम सब साथ हैं।"

स्‍वागत भाषण देते हुए टेरी के चेयरमैन और गवर्निंग काउंसिल के सदस्‍य श्री नितिन देसाई ने कहा, "यह शिखर सम्‍मेलन सतत विकास को नीति में बदलने वाले सभी राजनीतिक अग्रणियों को, उसे निवेश विकल्‍पों में बदलने वाले कॉर्पोरेट अग्रणियों एवं कार्यकारियों को और ऐसे शोधकर्ताओं व शिक्षाविदों को साथ लाता है, जो प्रौद्योगिकी में शोध एवं विश्‍लेषण शामिल कर सकते हैं, साथ ही नागरिक समाज में काम कर रहे लोगों को भी एक साथ लाता है।"

धन्‍यवाद ज्ञापित करते हुए टेरी की महानिदेशक डॉ. विभा धवन ने याद दिलाया कि "प्रकृति ही हमें अंतत: जलवायु परिवर्तन और उच्‍च कार्बन उत्‍सजर्न पर काबू पाने में मदद करेगी। हमें ऊर्जा की ज़रूरत है और हमें विकास की भी आवश्‍यकता है। पर हमें यह भी समझना पड़ेगा कि प्रकृति अधिक महत्‍वपूर्ण है और हमें पृथ्‍वी पर खुद को बनाये रखना होगा।"

अंतरराष्‍ट्रीय गणमान्‍य व्‍यक्तियों में अमेरिका के श्री जॉन केरी, जलवायु परिवर्तन के लिए विशेष राष्‍ट्रपति दूत, शिखर सम्‍मेलन के पहले दिन विकसित देशों में नेतृत्‍व के मंत्रिस्‍तरीय सत्र में भाग लेंगे। नॉर्वे के जलवायु एवं पर्यावरण मंत्री श्री ऐस्‍पट बर्थ आइद, जर्मनी की पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, परमाणु सुरक्षा एवं उपभोक्‍ता संरक्षण मंत्री सुश्री स्‍टेफ़ी लेम्‍क, कनाडा के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री स्‍टीवन गिल्‍बॉ, फिनलैंड की पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री सुश्री एमा कैरि, फ्रांस की पारिस्थितिक संक्रमण मंत्री सुरक्षी बार्बरा पॉम्पिलि, स्‍पेन के पारिस्थितिक संक्रमण और जनसांख्यिकीय चुनौती मंत्रालय की मंत्री सुश्री टेरेसा रिबेरा रॉड्रिग्‍ज़ विचार-विमर्श का हिस्‍सा होंगे।

टेरी का परिचय

दि एनर्जी ऐंड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट (टेरी) एक स्वतंत्र, बहुआयामी अनुसंधान संगठन है, जिसके पास नीति अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास और कार्यान्वयन की क्षमताएं हैं। टेरी का मुख्यालय नई दिल्ली में है और गुरुग्राम, बेंगलुरु, गुवाहाटी, मुंबई, पणजी तथा नैनीताल में क्षेत्रीय केंद्र व परिसर हैं। टेरी के पास अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे के साथ विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, इंजीनियरों, प्रशासनिक लोगों की एक टीम मौजूद है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
पी अणिमा – animap@teri.res.in
सुमित बंसल – sumit.bansal@teri.res.in

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