फूलों की घाटी और कचरे का ढेर

भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी की ऊंचाई 7816 मीटर है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।यह दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। वर्ष 1982 में इस क्षेत्र में वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण और इसे पर्यावरणीय नुकसान से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था।

 

फूलों की घाटी का मनमोहक नज़ारा

 

यह राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र आज दुनिया में कुछ दुर्लभ और अद्वितीय उच्च ऊंचाई वाले वनस्पतियों और जीवों का घर है। यह दुनिया के सबसे प्रमुख पारिस्थितिक आकर्षण केंद्रों में से एक है और यह कई तरह के पक्षियों, स्तनधारियों, पौधों, पेड़ों और तितलियों का आवास स्थान है। उद्यान में वन कवर ऋषि कण्ठ तक सीमित है। ऋषि कंठ वो इलाका है जहाँ से ट्री लाइन खत्म होती है या यूँ कहे ब्युगयाल शुरू होते है। इस पार्क में प्राथमिक वनस्पति में देवदार, सन्टी और जुनिपर शामिल हैं। इस पार्क में वनस्पतियों की कुल 312 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 17 को दुर्लभ माना जाता है। नंदा देवी नेशनल पार्क जानवरों की आबादी से भी भरा हुआ है। यहां पाए जाने वाले जीवों में हिम तेंदुए, हिमालयी काले भालू, भूरे भालू, तेंदुए, हिमालयन कस्तूरी मृग, कॉमन लंगूर, गोरल और भारल जैसी प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां 80 पक्षियों की प्रजातियां पाई गई हैं, जिनमें भारतीय पेड़ के पिपिट, ब्लू-फ्रंटेड रेडस्टार्ट, रोज फिंच और रूबी थ्रोट शामिल हैं।

नन्दा देवी पार्क के अन्तर्गत हेमकुण्ड साहिब, वैली ऑफ़ फ्लावर्स और बद्रीनाथ धाम में धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन के लिये लाखो पर्यटक आते है और उनके साथ ही आता है पानी की खाली बोतलें, चिप्स,बिस्किट और अन्य कई प्रकार का प्लास्टिक कचरा। डॉ गजेंद्र जी ने बताया कि-यह कचरा यहाँ के जलस्रोतों को तो दूषित कर रहा है साथ ही नन्दा देवी पार्क में कयी दुर्लभ जड़ी बूटियाँ उगती है और जिन जगहों पर यह कचरा है वहाँ जड़ी बूटियाँ के पैदा होने की परिस्थितियां कम होती है और उन जगहों पर जड़ी बूटियाँ( विशेष वनस्पतियां) नहीं उगती।

 

बद्रीनाथ - नीलकण्ठ ट्रैक में मिलने वाली ब्लूबैरी

 

अगर आप प्रकृति की सुंदरता की खोज करना चाहते हैं तो आपके लिए नंदा देवी पार्क एक परफेक्ट पर्यटन स्थल है। पर्यटकों की पहली पसंद फूलो की घाटी, बद्रीनाथ और हेमकुण्ड साहिब नंदादेवी राष्ट्रिय उद्यान के अन्तर्गत आते है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों को ट्रैकिंग और लंबी पैदल यात्रा का एक खास अवसर प्रदान करता है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान 1 मई से 31 अक्टूबर तक पूरे वर्ष में केवल छह महीने के लिए आगंतुकों के लिए खुलता है।

 

हेमकुण्ड साहिब में खिले ब्रह्मकमल

 

हेमकुण्ड साहिब जाते श्रद्धालु

 

1 मई से पूरा इलाका पर्यटकों के लिये खुलने के बाद, पर्यटको की आवाजाही से ये उच्च हिमालयी इलाका गुलजार हो उठता है, फिर चाहे वो प्रकृति प्रेमी पर्यटक हो जो फूलो की घाटी घूमने पहुंचते हैं या फिर धार्मिक पर्यटन के लिए हेमकुण्ड और बद्रीनाथ हर वर्ष लाखों की संख्या में पहुँचने वाले लोग। यहाँ तक पहुँचने वाले लोगों के लिए सभी सुविधाओं को विकसित किया जाता है जैसे - सड़क मार्ग, होटल और रेस्तरां। लाखों लोगों के यहाँ पहुंचने से यह संवेदनशील उच्च हिमालयी इलाका जलवायु परिवर्तन के असर से जूझ रहा है और इसके ऊपर से इन ऊंचाई वाले इलाकों में कचरे का सही प्रबंधन न होना और प्लास्टिक का यहाँ पहुंचना और भी खतरनाक परिणाम देने वाले है।

 

हेमकुण्ड साहिब ट्रैक के दौरान 4300 मीटर की ऊंचाई पर प्लास्टिक कचरे का ढेर

 

बढ़ते कूड़े की समस्या पर फ़ेलो सौरभ मनूजा, टेक्निकल एक्सपर्ट, जिआईज़ेड (पूर्व में टेरी के फेलो) कहते हैं कि ''नन्दा देवी नेशनल पार्क के विभिन्न प्राकृतिक और धार्मिक क्षेत्र जहाँ पर पर्यटकों की आवाजाही है वहाँ पैकेज्ड फ़ूड पैकेजिंग और सिंगल यूज प्लास्टिक भी बढ़ रहा है, इस कचरे की ऊंचाई के इलाकों में रिसाइक्लिंग नहीं होती क्योंकि इनफॉर्मल सेक्टर को इससे लाभ नहीं होता और फिर एक जगह कचरे का ढेर बन जाता है जिसमें जानवर खाना ढूंढने आते है, दूसरा इससे रिस कर निकलने वाली गंदगी पानी को दूषित करती है और भूमि उर्वरकता को भी नुकसान पहुँचता है। एक महत्वपूर्ण बात जब इन कचरो के ढेर में बायो वेस्ट सड़ता है तो उसमें से मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड गैस निकलती है और यह जलवायु परिवर्तन के चक्र को और तेज़ करती है।

 

हेमकुण्ड साहिब ट्रैक से सम्पूर्ण घाटी का विहंगम नज़ारा

 

यह सम्पूर्ण क्षेत्र जैव विविधता और भगौलिक संरचना के लिहाज से बहुत ही संवेदनशील है। उच्च हिमालयी क्षेत्र का संरक्षण और संवर्धन एक चुनौतीपूर्ण काम है। सौरभ मनुजा इस पर कहते हैं, "प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बहुत स्पष्ट तौर पर यह कहते है कि अर्बन लोकल बॉडीज को यहाँ आने वाले प्रत्येक पर्यटक को जागरूक करना है और प्लास्टिक वेस्ट के निस्तारण के तरीके अपनाने है, साथ ही जो पर्यटक आते है उन्हें जागरूक करे और उनको सुविधाएं भी दे की वो प्लास्टिक को न फेंके। इसके आलावा जो चीजे रिसाइकिल नहीं की जा सकती है उनका कम इस्तेमाल किया जाए और ज्यादा रियूजेबल चीज़े इस्तेमाल करे।"


बद्रीनाथ - नीलकण्ठ में ग्लेशियर और उससे निकलती जलधारा

 

नंदा देवी नेशनल पार्क के अन्तर्गत आने वाले सम्पूर्ण क्षेत्र बेहद खूबसूरत और मनमोहक है साथ ही जैव विविधता के नज़रिए से बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए हमें पर्यटन, धार्मिक यात्राओ के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ना होगा।