कोविड -19 और यात्री परिवहन - फिर से कार और मोटरसाइकिल के स्थान पर साइकिल और पदयात्रा की ओर

26 May 2020

जब इस महामारी का दौर धीमा होगा या थम जाएगा तब हमारे जीने के तरीके बदल जाएंगे। लॉकडाउन में यात्री परिवहन थम गया था। अब धीरे धीरे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को शुरू किया जा रहा है। लेकिन सार्वजनिक परिवहनों में शारीरिक दूरी बनाना मुश्किल है। हमें यातायात के विभिन्न माध्यमों पर विचार करना होगा और उसमें बदलाव करने होंगे।

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कोविड -19 के बाद, लोग निजी वाहनों के ज़रिए शारीरिक दूरी बनाने की कोशिश करेंगे।

कोरोना वायरस की कड़ी को तोड़ने के लिए सरकार ने सभी परिवहन सेवाओं को बंद कर दिया था। परिवहन सेवाओं के बंद होने और मानवीय गतिविधियों के रुकने से भारतीय अर्थव्यवस्था को अत्यधिक हानि भी हुई। वैसे इस तरह के अभूतपूर्व कदम बहुत ही आवश्यक भी थे नहीं तो इस महामारी को और व्यापक रूप में फैलने से नहीं रोका जा सकता था और अर्थव्यवस्था को कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ता।

यह तय है कि जब इस महामारी का दौर धीमा होगा या थम जाएगा तब हमारे जीने के तरीके बदल जाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी को पूर्णतः समाप्त करने के लिए कारगर वैक्सीन बनाने में समय लगेगा और हमें इसके साथ ही रहने के लिए अपनी दिनचर्या में कुछ परिवर्तन करना अनिवार्य हो जाएगा। यात्रा करते समय एक दूसरे से पर्याप्त दूरी रखना कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकता है। लेकिन सार्वजनिक परिवहनों में शारीरिक दूरी बनाना मुश्किल है। हमें यातायात के विभिन्न माध्यमों पर विचार करना होगा और उसमें बदलाव करने होंगे। उपनगरीय ट्रेनों, सार्वजनिक बसों और मेट्रो में अधिक भीड़भाड़ को इस तरह व्यवस्थित करना होगा कि लोग एक दूसरे से दूरी बना कर आरामदायक तरीके से बैठ सके या खड़े हो सके। हालाँकि यातायात का प्रबंधन करना एक चुनौती भी होगी क्योंकि आपूर्ति पहले ही मांग से बहुत कम है। सीमित साधनो के कारण सार्वजनिक परिवहनों की व्यवस्था करना निश्चित रूप से ट्रांसपोर्ट संचालकों के लिए एक कठिन काम होगा। रेलवे अपनी यात्री सेवाओं को इस तरह डिजाइन करती है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को ले जाया जा सके। फलस्वरूप उपनगरीय रेल के कोच लोगों से ठसाठस भरे होते हैं।

कोविड -19 के बाद, जब स्थिति कुछ सामान्य होगी, तो लोग निजी वाहनों के ज़रिए शारीरिक दूरी बनाने की कोशिश करेंगे। लोग स्कूटर और मोटरबाइक से यात्रा करना पसंद करेंगे, उन लोगों का ज़िक्र छोड़ दे जो पहले ही निजी यात्रा के लिए कार का इस्तेमाल करते थे या अब कार खरीदने में सक्षम हैं। वैसे आज भी कई कारणों से, दोपहिया वाहन परिवहन का एक पसंदीदा तरीका है क्योंकि यह सुविधाजनक है और सार्वजनिक परिवहन की तुलना में सस्ता भी है। सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी और जो साफ़ वातावरण हमें अभी मिला है वह फिर से एक सपना हो जाएगा। निजी वाहन अपनाने के अन्य कारण भी हैं। मांग के अनुसार बसों की संख्या कम है। कई शहरों में मेट्रो रेल आ गयी है लेकिन अभी तक भी ज़्यादातर लोगों के लिए यह एक सही विकल्प नहीं है खासकर जो स्टेशन से एक किलोमीटर से अधिक की दूरी पर रहते हैं और उन लोगों के लिए भी जो इसका किराया वहन नहीं कर सकते जो कि बसों और उपनगरीय रेल गाड़ियों के किराए से ज़्यादा है।

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अगर 50 प्रतिशत लोग 8 किलोमीटर की दूरी साइकिल और पैदल चल कर पूरा करेंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था को वार्षिक जीडीपी के 0.9 से 1.3 प्रतिशत तक का आर्थिक लाभ होगा।

टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट) के एक अध्ययन के अनुसार, 2015-16 में दोपहिया और कारों द्वारा की जाने वाली कार्य यात्राएं कुल यात्राओं का 17 और 4 प्रतिशत थीं। जो लोग अपने काम पर पैदल जाते हैं, वे 23 प्रतिशत हैं, जबकि साइकिल का इस्तेमाल करने वाली संख्या कुल यात्राओं का 13 प्रतिशत है। हालाँकि दोपहिया और कारों के वार्षिक 10 प्रतिशत विकास के कारण मोटर चालित यात्राओं का अनुपात अब और बढ़ गया है। साइकिल की बिक्री में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

हर शहर में यात्रा करने के तरीके अलग-अलग हैं। छोटे शहरों में बड़े शहरों की तरह सार्वजनिक परिवहन संगठित नहीं है इसलिए यहाँ कार्य यात्रा के लिए दोपहिया वाहनों का अधिक इस्तेमाल होता है। शहरों में घर से दफ्तर या काम पर जाने लिए साइकिल का इस्तेमाल काफी कम हुआ है। इसकी वजह लोगों की बढ़ी हुई आमदनी, सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं और सड़कों पर भीड़ का बढ़ना है। काम के बेहतर अवसरों की तलाश करने के लिए मोटरबाइकों का उपयोग अधिक लोकप्रिय है, खासकर अधिक दूरी के लिए।

घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बाज़ारों का और कारोबारी जगहों के पास-पास होने की वजह से हमारे शहरों में ज्यादातर लोगों को काम पर जाने के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ता। छोटे शहरों में यह ट्रिप दूरी लगभग औसतन 5 किलोमीटर और बड़े शहरों में 8 किलोमीटर है। अगर सार्वजनिक परिवहन और पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए निवेश किया होता तो मोटर चालित वाहनों का इतने व्यापक स्तर पर उपयोग नहीं होता। इसलिए साइकिल चलाने और और पैदल चलने को बढ़ावा देना होगा ताकि लोग मोटर चालित वाहनों की तरफ न मुड़े। अगर 50 प्रतिशत लोग 8 किलोमीटर की दूरी साइकिल और पैदल चल कर पूरा करेंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था को वार्षिक जीडीपी के 0.9 से 1.3 प्रतिशत तक का आर्थिक लाभ होगा। अगर 100 प्रतिशत प्रतिस्थापन की बात की जाए तो यह लाभ वार्षिक जीडीपी के 4-6 प्रतिशत के बराबर हो सकता है। लेकिन यह एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी परिदृश्य में ही संभव है।

कई यूरोपीय देशों की तरह हमें सड़कों पर साइकिल से यात्रा करने को प्राथमिकता देनी होगी। इस तरफ रुख करने से एक टिकाऊ परिवहन प्रणाली की शुरुआत हो सकती है। साथ ही साइकिल चलाना उस वक़्त की यादें भी ताज़ा करेगा जब यात्रा करने का यह एक लोकप्रिय साधन था। यूरोपीय देशों का अनुकरण करके सरकार गैर-मोटर चालित यात्रा के तरीकों में निवेश कर सकती है। साइकिल को सड़क पर चलने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए। अलग से साइकिल ट्रैक बनाने से और फूटपाथ की पर्याप्त सुविधा देने से लोग वाहनों को छोड़कर साइकिल चलाने और पैदल चलने के लिए प्रेरित होंगे।

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शहरों में छोटी दूरी के लिए किराया बढ़ाया जाना चाहिए इससे बसों और रेलगाड़ियों में भीड़ भाड़ को कम करने में सहायता मिलेगी।

आरामदायक यात्रा के लिए और भीड़ को कम करने के लिए बसों की उपलब्धता में कई गुना वृद्धि होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यात्री एक दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाए रखें। राज्य सरकारें मेट्रो सेवा का बड़े शहरों में विस्तार करने के लिए ठोस प्रयास कर रही हैं लेकिन मेट्रो रेलवे की तुलना में लखनऊ, कानपुर और पटना जैसे शहरों में आवागमन के लिए बसें बहुत सुविधाजनक हैं। पीक टाइम में ऑफिस जाने वालों के लिए पॉइंट टू पॉइंट बसों की संख्या बढ़ानी होगी। सीमित संसाधनों को खर्चीली मेट्रो रेल प्रणाली पर लगाने की बजाय बसों की संख्या बढ़ाने पर लगाना चाहिए।

बड़ी संख्या में कामकाजी लोग ट्रेनों से यात्रा करते हैं; मुंबई में उपनगरीय ट्रेन सेवा को वहां की जीवन रेखा माना जाता है। कई शहरों में लोग काम के लिए रोज़ाना गाँवों और आस-पास के शहरों से भीड़-भाड़ वाली लोकल ट्रेनों से यात्रा करते हैं क्योंकि यह सस्ता और कई बार यह एकमात्र विकल्प है। पलवल, सोनीपत, मेरठ, रेवाड़ी और अलीगढ़ / गाजियाबाद और शामली से बड़ी संख्या में लोग रोज़ाना सुबह दिल्ली आते हैं और शाम को अपने घर लौट जाते हैं। सरकार ने मेरठ, सोनीपत और मानेसर आदि जैसे कुछ मार्गों से यात्रा और मौजूदा रेल यात्रा को आसान बनाने के लिए क्षेत्रीय रेल परिवहन की योजना बनाई है, हालांकि संसाधनों की कमी और निर्माण में कठिनाइयों के कारण इस परियोजना को पूरा करने में कई साल लग सकते हैं। इसके बजाय सरकार पारंपरिक रेल प्रणाली के क्षमता विस्तार की योजना बना सकती है, जिसके लिए कम निवेश की आवश्यकता होगी और काम भी जल्दी से पूरा होगा।

बड़े पैमाने पर परिवहन प्रणाली जैसे, रेलवे, मेट्रो रेल और बसों को अपनी किराया नीतियों पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में, किराया दूरी के अनुसार तय किया गया है; यात्री कम यात्रा के लिए कम भुगतान करते हैं और यात्रा की दूरी बढ़ने के साथ ही किराया भी बढ़ता है। शहरी केंद्रों में 8 किलोमीटर तक की छोटी दूरी के लिए यात्री का किराया बढ़ाया जाना चाहिए। 15 किलोमीटर से अधिक दूरी के लिए जो किराया तय है उसी को जारी रखना चाहिए। वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांग लोगों को किराए में रियायत दी जा सकती है। इससे बसों और रेलगाड़ियों में भीड़ भाड़ को कम करने में सहायता मिलेगी और लोग साइकिल का प्रयोग अधिक करेंगे तथा थोड़ी दूर के लिए पैदल चलेंगे।

लाकडाऊन के समय घर से काम करने की प्रथा को बड़े पैमाने पर आरम्भ किया गया था। इससे यात्रा करने की आवश्यकता ही कम हो गई। जो लोग घर से काम कर रहे हैं यदि वह करतें रहें और अपने दफ्तर केवल जरूरत होने पर जाएँ तो पीक टाइम पर सड़को पर भीड़ काफी काम की जा सकती है। इससे उत्पादकता में भी सुधार होगा। लोग अपने घरों के आरामदायक वातावरण में अधिक समय अपने काम पर दे पाएंगे। कामकाजी महिलाओं के लिये विशेषकर जिनके छोटे बच्चे हैं, यह वरदान साबित होगा।

कोविड-19 अनायास हमें फिर स्वस्थ जीवन प्रणाली को अपनाने का अवसर दे रहा है। छोटी यात्राओं के लिए साइकिल का प्रयोग और पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। सरकार अपनी नीतियों द्वारा भी इसे प्रोत्साहित करे तथा आवश्यक सुविधाएं प्रदान करे तो ऐसी यात्रा प्रणाली हमारे शहरों के वातावरण को बहुत साफ-सुथरा करने में भी मदद करेगी। एक बार फिर आप रोज़ नीला आसमान देखेंगे।