लखनऊ में भूमिगत जल का दोहन मौजूदा रिचार्ज की तुलना में 17 गुना अधिक, टिकाऊ प्रबंधन की सख़्त ज़रूरत: टेरी

June 4, 2021
Prakash Javadekar

4 जून, 2021, नई दिल्ली: लखनऊ शहर पूर्व-मानसून अवधि में अपने भूमिगत जल सिस्टम में, वर्षा और गोमती नदी से होने वाले कुल रिचार्ज के मुकाबले, लगभग सत्रह गुना अधिक भूमिगत जल का दोहन कर रहा है। अगर ये दोहन इसी दर से चलता रहा तो साल 2031 तक मध्य लखनऊ के प्रमुख मोहल्लों में भूमिगत जल का स्तर वर्तमान स्तर से 20-25 मीटर नीचे चले जाने का अनुमान है। ये निष्कर्ष नई दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) और दिल्ली विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के साथ मिलकर किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं। इस अध्ययन को उत्तर प्रदेश भूमिगत जल विभाग, लखनऊ ने विश्व बैंक के सहयोग से प्रायोजित किया। अध्ययन के तहत शहर का भूमिगत जल ऑडिट किया गया जिसमें शहरी सीमाओं के भीतर विभिन्न सेक्टरों में भूमिगत जल की उपलब्धता, मांग, दोहन और उपयोग का विस्तृत मूल्यांकन किया गया है। इस अध्ययन में भूमिगत जल के लखनऊ की अर्थव्यवस्था को होने वाले कुल योगदान का भी अनुमान लगाया गया है और साथ-साथ इस बात के लिए कुछ प्रमुख सुझाव भी दिए गए हैं कि कैसे सभी स्टेकहोल्डर्स को साथ लेकर शहर में भूमिगत जल के प्रबंधन और प्रशासन में सुधार किया जा सकता है।

यह अध्ययन फरवरी विश्व पर्यावरण दिवस से पहले, 2022 में होने वाले टेरी के वार्षिक सम्मेलन द वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट के वर्चुअल कर्टन रेज़र इवेंट के दौरान, जारी किया गया। इस कार्यक्रम में 'सस्टेनेबल, इक्वेटेबल एंड रेज़ीलिएंट वॉटर यूज़' की थीम पर विचार-विमर्श किया गया। इस अवसर पर माननीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर मुख्य अतिथि थे। टेरी ने श्री विक्रम चंद्रा के नेतृत्व वाले डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म, एडिटरजी के साथ साझेदारी में, पानी पर एक प्रमुख सार्वजनिक अभियान शुरू करने की भी घोषणा की।

इस मौके पर श्री जावडेकर ने कहा कि वनों के संरक्षण के लिए CAMPA तंत्र के माध्यम से सरकार ने लगभग 40,000 करोड़ रु खर्च किए हैं। उन्होंने राज्यों से आग्रह किया कि वे वित्त आयोग द्वारा दिए गए धन का उपयोग वृक्षों के आवरण और जल संसाधनों में सुधार के लिए करें। केन-बेतवा परियोजना की सराहना करते हुए, मंत्री ने कहा कि नदियों को आपस में जोड़ना भी एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो अतिप्रवाह वाली नदियों से पानी को कम पानी वाली नदियों में स्थानांतरित करने में मदद करती है। घरेलू क्षेत्र के बारे में बोलते हुए, श्री जावडेकर ने कहा, "घरेलू उपयोग में 50-60% पानी बचाया जा सकता है। प्रत्येक हाउसिंग सोसाइटी को छत पर वर्षा जल संचयन का प्रावधान करने की आवश्यकता है। रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) के माध्यम से बर्बाद हुए पानी का उपयोग बागवानी के लिए किया जाना चाहिए। सरकार इमारतों के लिए दोहरी पाइपिंग प्रणाली के लिए नए मानदंड स्थापित कर रही है, पीने के पानी को पुन: उपयोग किए गए पानी से अलग कर रही है जिसका उपयोग केवल फ्लशिंग उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

भारत के घटते जल संसाधनों के कृषि क्षेत्र पर भारत के घटते जल संसाधनों के गंभीर प्रभावों को रेखांकित करते हुए, टेरी की महानिदेशक, डॉ विभा धवन ने कहा, "भारत को जल गहन फसलों के उत्पादन की अपनी वर्तमान प्रवृत्ति की समीक्षा करनी चाहिए। हमें ऐसी फसल की किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है जो गर्मी और पानी के तनाव के प्रति प्रतिरोधी हों। यह, कृषि में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाने के साथ-साथ समय की आवश्यकता है। गंभीर प्रभावों को रेखांकित करते हुए, टेरी की महानिदेशक, डॉ विभा धवन ने कहा, "भारत को जल गहन फसलों के उत्पादन की अपनी वर्तमान प्रवृत्ति की समीक्षा करनी चाहिए। हमें ऐसी फसल की किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है जो गर्मी और पानी के तनाव के प्रति प्रतिरोधी हों। यह, कृषि में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाने की आवश्यकता है।"

लखनऊ भूजल अध्ययन के प्रधान अन्वेषक श्री श्रेष्ठ तायल ने शहरी परिप्रेक्ष्य पर बोलते हुए कहा कि घने शहरों में वर्षा जल संचयन मुख्य समाधान नहीं हो सकता है, इसलिए उनके लिए अधिक वैज्ञानिक भूजल ऑडिट किया जाना चाहिए।

अध्ययन के तहत किए गए मांग सर्वेक्षण के कुछ प्रमुख निष्कर्ष कुछ इस प्रकार हैं:

  • लखनऊ में लगभग 72 प्रतिशत परिवारों में भूमिगत जल का इस्तेमाल होता है।
  • लगभग 90 प्रतिशत बहुमंजिला हाउसिंग सोसायटीज और होटलों, अस्पतालों, स्कूलों, ऑफिसों और मॉल्स जैसे लगभग 70 प्रतिशत व्यवसायिक उपभोक्ता भूमिगत जल पर निर्भर हैं।
  • मध्य, उत्तर और पूर्वी लखनऊ में सर्वेक्षण में शामिल की गईं सभी सोसायटीज निजी बोरवेल्स के ज़रिए भूमिगत जल का दोहन करती हैं, इसमें से 60 प्रतिशत बोरवेल्स 200 फुट से ज्यादा गहराई के हैं।
  • लगभग 25 प्रतिशत व्यवसायिक उपभोक्ताओं ने ये भी बताया कि बोरवेल्स के पहली बार खुदने से लेकर सर्वेक्षण के समय तक वे अपने क्षेत्र में वॉटरटेबल नीचे जाने के चलते उनकी गहराई 100 मीटर तक बढ़ा चुके हैं।
  • पानी के स्टोरेज टैंक के भर जाने पर उसकी सूचना देने वाली ओवरफ्लो घंटी का चलन लोगों में बहुत लोकप्रिय नहीं है।
  • लगभग 64 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वे वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं जिनमें से तीन चौथाई रिवर्स ओस्मोसिस यानी आरओ का इस्तेमाल करते हैं।

टेरी के सीनियर फेलो और अध्ययन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले श्रेष्ठ तायल ने कहा, "सर्वेक्षण से ये भी पता चला कि भूमिगत जल से लखनऊ की अर्थव्यवस्था को कुल 8400 करोड़ रुपये का योगदान होता है जो शहर की कुल जीडीपी का लगभग एक तिहाई है । अगर हम शहर की अर्थव्यवस्था में फ़ूड सर्विस उद्योग और बाकी सेवाओं से होने वाले परोक्ष योगदान को भी जोड़ लें तो इसमें शहर की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की क्षमता है।"

अध्ययन के तहत शहर के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग स्तर पर दोहन होने वाले पानी के पैटर्न के आधार पर लखनऊ शहर का एक माइक्रो-जोनेशन मैप बनाया गया । ज़ोन A, B और C (जिसमें आलमबाग, कैंटोनमेंट एरिया, चारबाग रेलवे स्टेशन, गोमती नगर, लखनऊ विश्वविद्यालय, पुराना लखनऊ जैसे इलाके आते हैं) में भूमिगत जल एब्स्ट्रक्शन (यानी भूमि से पानी खींचने की प्रक्रिया) की बहुत ज्यादा मात्रा को ध्यान में रखते हुए, अध्ययन में इसके टिकाऊ प्रबंधन के लिए निम्न रणनीतियां सुझाई गई हैं:

  • रेनवॉटर हार्वेस्टिंग: रेनवॉटर हॉर्वेस्टिंग के जरिये 1500 एमएल प्रति वर्ष क्षमता का निर्माण किया जाए। इसके लिए लगभग 40 मिलियन वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाली ज़मीन और लगभग 41 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
  • भूमिगत जल की मांग में कमी: वॉटर सेविंग फिक्सर्स का इस्तेमाल करके भूमिगत जल के प्रति व्यक्ति इस्तेमाल को दैनिक स्तर पर मौजूदा स्तर से एक तिहाई तक कम किया जा सकता है। इसके लिए इन ज़ोन्स के लगभग 2,00,000 परिवारों में कम से कम 3 वॉटर फिक्सर्स प्रति परिवार लगाने होंगे। इन वॉटर फिक्सर्स को लगाने के लिए तत्काल 30 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
  • विकेन्द्रीकृत वेस्टवॉटर रिसाइक्लिंग: व्यवसायिक कॉम्प्लेक्सों, बहुमंजिला कॉम्प्लेक्सों और ग्रुप-हाउसिंग सोसायटीज आदि में 10 किलोवॉट क्षमता के 2000 विकेन्द्रीकृत वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाकर इन जोन्स में पानी की मांग को 20 मिलियन लीटर प्रति दिन (20 एमएलडी) तक कम किया जा सकता है। इसके लिए तत्काल 60 करोड़ रुपये खर्च करने की आवश्यकता होगी।
  • भूमिगत जल का सरफेस या सतही जल से विस्थापन: टिकाऊ प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि मौजूदा भूमिगत जल की आपूर्ति को हैदर नहर और मोती झील जैसे पानी के सतही स्रोतों से विस्थापित किया जाए। पानी की पर्याप्त आपूर्ति करने के लिए इनका व्यवहारिक ढंग से विकास किया जा सकता है। इस विस्थापन के लिए जरूरी लागत का अनुमान इसी तरह के स्रोत पर किये गए प्रयोग की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर किया जा सकता है।

टेरी ने ये सुझाव दिया है कि राज्य/शहर के वित्तीय संसाधनों से रेनवॉटर हॉर्वेस्टिंग, पानी की मांग से जुड़े प्रबंधन और वेस्टवॉटर रिसाइक्लिंग से जुड़ी प्रस्तावित रणनीतियों के लिए आवश्यक धन को तत्काल आवंटित किया जाए और साथ ही इन सभी क़दमों को तत्काल लागू किया जाए। टेरी ने नीतिगत हस्तक्षेप के लिए भी कुछ सुझाव दिए हैं जिनमें व्यवसायिक उपभोक्ताओं के लिए पानी के संरक्षण को कारपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटीज़ (सीएसआर) की तरह अधिसूचित करना शामिल है। ये भी सुझाव दिया गया है कि व्यवसायिक और बड़ी हाउसिंग सोसायटीज के लिए पानी के प्रबंधन से जुड़ी परियोजनाओं को अनिवार्य बनाया जाए। एक अन्य सुझाव ये भी है कि भविष्य में शहर की आधारभूत संरचना में निवेश शहर की माइक्रो-वॉटरशेड प्रोफ़ाइल को ध्यान में रखकर किया जाए।

टेरी के बारे में

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानि टेरी एक स्वतंत्र, बहुआयामी संगठन है जो शोध, नीति, परामर्श और क्रियान्वयन में सक्षम है। संगठन ने लगभग बीते चार दशकों से भी अधिक समय से ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में संवाद शुरू करने और ठोस कदम उठाने का कार्य किया है।

संस्थान के शोध और शोध-आधारित समाधानों से उद्योगों और समुदायों पर परिवर्तनकारी असर पड़ा है। संस्थान का मुख्यालय नई दिल्ली में है और गुरुग्राम, बेंगलुरु, गुवाहाटी, मुंबई, पणजी और नैनीताल में इसके स्थानीय केंद्र और परिसर हैं जिसमें वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों और इंजीनियरों की एक बहु अनुशासनात्मक टीम कार्यरत है।

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